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ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
नीव बैठी जा रही है सारी दीवारें गईं
घर का बासी घर की हालत से नहीं क्या आश्ना
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ग़ज़ल
हमें अपनी ज़ात से इश्क़ हुआ हम अपने लिए बेताब हुए
तुम लोग पराए हिज्र में थे तुम अपने लिए नायाब हुए