aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "آئین"
शरअ' ओ आईन पर मदार सहीऐसे क़ातिल का क्या करे कोई
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकीअल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
ग़ैर पर लुत्फ़ मैं रहीन-ए-सितममुझ से आईना-ए-बज़्म-ए-यार न पूछ
मैं जो गुस्ताख़ हूँ आईन-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी मेंये भी तेरा ही करम ज़ौक़-फ़ज़ा होता है
या संजर ओ तुग़रल का आईन-ए-जहाँगीरीया मर्द-ए-क़लंदर के अंदाज़-ए-मुलूकाना
चमन में क्यूँ चलूँ काँटों से बच करये आईन-ए-वफ़ादारी नहीं है
साहिल ओ बहर के आईन सलामत न रहेअब तो साहिल से भी तूफ़ान उठा करते हैं
हार ही जीत है आईन-ए-वफ़ा की रू सेये वो बाज़ी है जहाँ जीत के हारे सारे
हम को मा'लूम न था पहले ये आईन-ए-जहाँउस को देते हैं सज़ा जिस की ख़ता कुछ भी नहीं
देते हैं जाम-ए-शहादत मुझे मा'लूम न थाहै ये आईन-ए-मोहब्बत मुझे मा'लूम न था
आईन-ए-ख़राबात मो'अत्तल है तो कुछ रोज़ऐ रिंद-ए-बला-नोश-ओ-तही-जाम तरस भी
बेहूदा-सारी सज्दे में है जान खपानाआईन-ए-मोहब्बत में अदब और ही कुछ है
सितम-गारों ने आईन-ए-वफ़ा मंसूख़ कर डालामगर कुछ लोग अभी उम्मीद-ए-अजराई में जीते हैं
शहर-ए-बे-मेहर में लब-बस्ता ग़ुलामों की क़तारनए आईन-ए-असीरी की बिना चाहती है
जब मैं ने कहा कम करो आईन-ए-हिजाब औरफ़रमाया बढ़ा दूँगा अभी एक नक़ाब और
बुलबुलें ताक़त-ए-गुफ़्तार से महरूम हुईंअब ये आईन-ए-गुलिस्ताँ है इसे क्या कहिए
आईन-ए-ज़बाँ-बंदी ज़िंदाँ पे नहीं लागूज़ंजीर सलामत है झंकार सलामत है
आईन-ए-पासदारी-ए-सहरा न छुट सकावज़'-ए-जुनूँ अगरचे बदलते रहे हैं हम
सोचना इस बाब में बेकार जाएगा तिराये मोहब्बत है मियाँ उस का अलग आईन है
यूँ ही बन बन के बिगड़ते रहे आईन-ए-वफ़ाबे-सहारों को सहारा तो किसी ने न दिया
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