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ग़ज़ल
आँख कहती है हमें अब अश्क-बारी छोड़ दें
आँसुओं से दिल की कैसे आब्यारी छोड़ दें
मन्नान क़दीर मन्नान
ग़ज़ल
चमन की आबियारी ख़ून से करती रहो 'मानी'
चमन के ख़ुश्क होने से सबा दम तोड़ देती है
इमराना मुशताक़ मानी
ग़ज़ल
ये बुज़ुर्गों की रवा-दारी के पज़मुर्दा गुलाब
आबियारी चाहते हैं इन में चिंगारी न रख