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ग़ज़ल
हक़ीक़त-आश्नाई अस्ल में गुम-कर्दा राही है
उरूस-ए-आगही परवुर्दा-ए-इब्हाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
न तो होश से तआ'रुफ़ न जुनूँ से आश्नाई
ये कहाँ पहुँच गए हम तिरी बज़्म से निकल के