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ग़ज़ल
हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पेशा हुस्न-परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैं ने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
कहूँ क्या ख़ूबी-ए-औज़ा-ए-अब्ना-ए-ज़माँ 'ग़ालिब'
बदी की उस ने जिस से हम ने की थी बार-हा नेकी
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जिस की उल्फ़त पर बड़ा दावा था कल 'अकबर' तुम्हें
आज हम जा कर उसे देख आए हरजाई तो है