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ग़ज़ल
भरे जोबन पे इतराती झमक अंगिया की दिखलाती
कमर लहंगे से बल खाती लटक घूँघट की भारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
बाँध गई है मुझ से ऐ दिल बंधन प्रीत की डोरी से
गाँव की वो नार जो अपने जौबन पर इतराती है
नासिर शहज़ाद
ग़ज़ल
मोहब्बत किस गली में रक़्स करती किस पे इतराती
अगर लैला किसी मजनूँ की दीवानी नहीं होती