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ग़ज़ल
हलावत ज़िंदगी की है मुलाक़ात-ए-अहिब्बा में
मज़ा मुर्दे को तन्हाई का है ज़िंदे को सोहबत का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
'अज़ीज़' अफ़्कार-ए-दुनिया और मशाग़िल शेर-गोई के
अहिब्बा की मोहब्बत है जो इस क़ाबिल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
फेरी हैं अहिब्बा ने आँखें बदले हैं अइज़्ज़ा ने तेवर
है 'शौक़' हर आराज़ी बंजर मालूम नहीं क्या होना है
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
था ख़ौफ़-ए-ख़ुदा दुश्मन-ए-खूँ-ख़्वार के दिल में
बेड़ा मिरी ईज़ा का अहिब्बा ने उठाया
करामत अली शहीदी
ग़ज़ल
आह ये मजमा-ए-अहबाब ये बज़्म-ए-ख़ामोश
आज महफ़िल में 'फ़िराक़'-ए-सुख़न-आरा भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यूँ हैरान 'क़तील'
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बज़्म-ए-अहबाब में हासिल न हुआ चैन मुझे
मुतमइन दिल है बहुत, जब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
कुछ हाल के अंधे साथी थे कुछ माज़ी के अय्यार सजन
अहबाब की चाहत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए