aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "احتلام"
शैख़ की सी ही शक्ल है शैतानजिस पे शब एहतेलाम होता है
न पूछ-गछ थी किसी की वहाँ न आव-भगततुम्हारी बज़्म में कल एहतिमाम किस का था
हम तो आए थे अर्ज़-ए-मतलब कोऔर वो एहतिराम कर रहे हैं
फिर वज़'-ए-एहतियात से रुकने लगा है दमबरसों हुए हैं चाक गरेबाँ किए हुए
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जावो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिनक्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन
रोना इलाज-ए-ज़ुल्मत-ए-दुनिया नहीं तो क्याकम-अज़-कम एहतिजाज-ए-ख़ुदाई है रोइए
दिल की वारफ़्तगी है अपनी जगहफिर भी कुछ एहतियात सी है अभी
उफ़ ये फ़ज़ा-ए-एहतियात ता कहीं उड़ न जाएँ हमबाद-ए-जुनूब भी नहीं बाद-ए-शिमाल भी नहीं
हो चला था जब मुझ को इख़्तिलाफ़ अपने सेतू ने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हम-नवाई की
या रब इस इख़्तिलात का अंजाम हो ब-ख़ैरथा उस को हम से रब्त मगर इस क़दर कहाँ
ले के दिल रख लो काम आएगागो अभी तुम को एहतियाज नहीं
मैं चाहता हूँ तू यक-दम ही छोड़ जाए मुझेये हर घड़ी तिरे जाने का एहतिमाल न हो
ये और बात है तुझ से गिला नहीं करतेजो ज़ख़्म तू ने दिए हैं भरा नहीं करते
ये एहतिमाम और किसी के लिए नहींता'ने तुम्हारे नाम के हम पर ही आएँगे
ऐ 'अदम' एहतियात लोगों सेलोग मुनकिर-नकीर होते हैं
आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब केहैं उन के दिल में वसवसे अब एहतिसाब के
हर चंद इख़्तिलाफ़ के पहलू हज़ार थेवा कर सका मगर लब-ए-गोया न तू न मैं
शर्म है एहतिराज़ है क्या हैपर्दा सा दरमियान है प्यारे
बेगानगी पर उस की ज़माने से एहतिराज़दर-पर्दा उस अदा की शिकायत कहाँ कहाँ
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