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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
अपे कहा कुन अपे चे फ़यकूँ अपे है सानेअ' अपे है सनअ'त
अपे अहद और अपे चे अहमद अपे है आदम अपे है हव्वा
अलीमुल्लाह
ग़ज़ल
अनल-हक़ जुज़्व-ए-ला-यंफक बना है मेरे ईक़ाँ का
यही है क़ुल-हुवल्लाहु-अहद मस्तों के क़ुरआँ का