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ग़ज़ल
वो जिन के तहत झुक जाता था सर असनाम के आगे
वही भूले हुए अहकाम-ए-यज़्दाँ याद आते हैं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
इंक़लाब आए तो फिर हिम्मत-ए-मर्दां की क़सम
वक़्त की वक़्त के अहकाम से बातें होंगी
नूर मोहम्मद नूर
ग़ज़ल
तिरे अहकाम की दुनिया मिरे आ'माल का महशर
यहाँ मेरी वहाँ तेरी ख़ुशी से कुछ नहीं होता