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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मुझे गुफ़्तुगू से बढ़ कर ग़म-ए-इज़्न-ए-गुफ़्तुगू है
वही बात पूछते हैं जो न कह सकूँ दोबारा
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ये क़त्ल-ए-आम और बे-इज़्न क़त्ल-ए-आम क्या कहिए
ये बिस्मिल कैसे बिस्मिल हैं जिन्हें क़ातिल नहीं मिलता
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
फिर वो परवाने जिन्हें इज़्न-ए-शहादत न मिला
फिर वो शमएँ कि जिन्हें रात न होने पाई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सर-ए-तस्लीम है ख़म इज़्न-ए-उक़ूबत के बग़ैर
हम तो सरकार के मद्दाह हैं ख़िलअत के बग़ैर