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ग़ज़ल
बुलबुल के अश्क-ए-सुर्ख़ ने ये क्या ग़ज़ब किया
जो तीलियाँ क़फ़स की सभी ख़ूँ में रंगियाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
रज़ा अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इस अश्क-ए-सुर्ख़ ओ रुख़-ए-ज़र्द से समझ ले तू
बयान क्या करूँ ख़ुद अर्ज़-ए-हाल अपना हूँ
जोशिश अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बीमार-ए-ग़म है सोज़-ए-अलम का फुंका हुआ
हर क़तरा अश्क-ए-सुर्ख़ का डर है शरर न हो
बेदिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
वो सोज़-ए-दिल से भर लाता था अश्क-ए-सुर्ख़ आँखों में
अगर हम जी की बेचैनी से आह-ए-सर्द भरते थे
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
जिस तरफ़ देखो उधर इक सर-ब-सर बाज़ार है
घर भी इक बाज़ार है और रहगुज़र बाज़ार है