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ग़ज़ल
किताबों की तहों में ढूँढना ना-दीदा अश्या का
पलट कर फिर कोई ख़ाली इबारत देखते रहना
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
शाहिद माकुली
ग़ज़ल
हुस्न आता है अश्या में मौक़ा से महल से
हर मार-ए-सियह-ज़ुल्फ़ दिल-आवेज़ बहुत है
मोहम्मद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
ज़िंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर-चंद कि हूँ होश में हुश्यार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
कहीं बोसे की मत जुरअत दिला कर बैठियो उन से
अभी इस हद को वो कैफ़ी नहीं हुश्यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
गले में ज़िंदगी के रीसमान-ए-वक़्त है तो क्या
परिंदे क़ैद में हों तो बहुत हुश्यार होते हैं
अब्बास क़मर
ग़ज़ल
ले रहा है दर-ए-मय-ख़ाना पे सुन-गुन वाइ'ज़
रिंदो हुश्यार कि इक मुफ़सिदा-पर्दाज़ आया