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ग़ज़ल
वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है
कोई संग-ए-रह को ख़बर करो उसी आस्ताँ का इरादा है
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
बड़ी मुश्किल कहानी थी मगर अंजाम सादा है
कि अब उस शख़्स का हम से बिछड़ने का इरादा है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
मुस्तक़बिल और हाल के आज़ारों के साथ निमटने को
चौपालों में माज़ी की यादों का इआदा होता था
एहतिशाम हसन
ग़ज़ल
ज़ियाँ जिगर का सही ये जो शग़्ल-ए-बादा है
दिल-ओ-नज़र के लिए इस में कुछ इफ़ादा है