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ग़ज़ल
कितनी मोहब्बत करता है वो कैसे कहें गर पूछ ले कोई
सो आदाद-ओ-शुमार की ख़ातिर ज़ख़्म-शुमारी कर लेते हैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
बे-रंग में नैरंग है वहदत में है कसरत
आदाद हों अफ़राद जो हो तर्क-ए-इज़ाफ़ात
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
इल्म-ए-आ'दाद से होता है हिजाब-ए-अकबर
एक हर हाल में हूँ कुल में रहा करता हूँ
यासीन अली ख़ाँ मरकज़
ग़ज़ल
क्या करें हम बे-कफ़न लाशों के आदाद-ओ-शुमार
आरिज़-ओ-लब की सुनहरी दास्ताँ होते हुए