aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "افعی"
न कसदम हैं न अफ़ई हैं न अज़दरमिलेंगे शहर में इंसान ही क्या
सब्ज़ा-ए-ख़त से तिरा काकुल-ए-सरकश न दबाये ज़मुर्रद भी हरीफ़-ए-दम-ए-अफ़ई न हुआ
बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझेसाया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़'ई नज़र आता है मुझे
अफ़'ई की तरह डसने लगी मौज-ए-नफ़स भीऐ ज़हर-ए-ग़म-ए-यार बहुत हो चुकी बस भी
उस की काकुल है बुरी मान कहा ऐ अफ़ईदेखियो उस से तू कांधा न रगड़ कर चलना
ज़ुल्फ़ें छुटी हुई हैं जो चेहरे पे दो तरफ़लहरा रहे हैं अफ़ई-ए-पेचाँ इधर-उधर
अफ़्साना-गोई अफ़ई-ए-गेसू-ए-यार मेंख़ामोश हों चराग़ जो हम गुफ़्तुगू करें
डस लिया अफ़'ई-ए-शाम-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त ने मुझेफिर न जागूँगा अगर नींद ज़रा भी आई
मिरे हाथ पर खेले हैं अफ़ई-ए-ज़ुल्फ़ये साँप आस्तीनों के पाले हुए हैं
ज़ुल्फ़-ए-रसा को समझा जो अफ़ईचूका वो क़स्र-ए-कोताह भूला
अफ़ई भी सो रहे हैं चमेली की छाँव मेंनौ-वारिद-ए-चमन हो सँभल कर चला करो
साया-ए-ज़ुल्फ़ ने उस के ये दिया धोका रातचलने वालों ने जिसे अफ़ई-ए-रहज़न समझा
उगला जो ज़हर अफ़ई-ए-गेसू-ए-यार नेहर मू-ए-मार-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह मार हो गया
देखो किसी चेहरे पे जो गेसू कोई बल-दारअफ़ई है उसे ज़ुल्फ़-ए-चलीपा न समझना
पैवस्त थे ज़मीन से अफ़आ शजर से तीरजूँ ही जुदा मैं शाम-ए-अज़ा-दार से हुआ
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहोअफ़ई कहो सियाह कहो अज़दहा कहो
अफ़ई नहीं खुली हुई ज़ुल्फ़ों का अक्स हैजाते कहाँ हो आईना ओ शाना छोड़ कर
ज़ुल्फ़-ए-गुल रो के गले मिल कर जो आएगी 'नसीम'होगी सुम्बुल अफ़ई-ए-गंज-ए-शहीदान-ए-बहार
कह वो मश्शाता से अफ़ई है वो ज़ुल्फ़उस के काटे का नहीं मंतर न छेड़
बंसारियों में बंसरी बाजी घटाओं कीअफ़ई हवा में खिल उठे खोल अपनी छतरियाँ
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