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ग़ज़ल
जैसे सब लिखते रहते हैं ग़ज़लें नज़्में गीत
वैसे लिख लिख कर अम्बार लगा सकता था मैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
मुश्किल है गुज़र इस में बे-नाला-ए-आतिशनाक
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नंगी हो कर नाच रही है भूकी रूहों की मजबूरी
झाँक सको तो झाँक के देखो जिस्मों के अम्बार के पीछे