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ग़ज़ल
आग़ाज़-ए-मोहब्बत तो बहुत ख़ूब है 'ताबिश'
अंजाम-ए-मोहब्बत से ख़बर-दार नहीं हूँ
मुनव्वर ताबिश सम्भली
ग़ज़ल
मैं समझता तो हूँ अंजाम-ए-मोहब्बत को 'हबीब'
दिल इस अंजाम से लर्ज़ां हो ज़रूरी तो नहीं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
नहीं मा'लूम कि अंजाम-ए-मोहब्बत क्या हो
ग़म का ख़ुद ग़म की हक़ीक़त ने अगर साथ दिया