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ग़ज़ल
है मुकम्मल वक़्त के सूरज पे मेरा इंहिसार
ज़िंदगी के पाँव से लिपटा हुआ साया हूँ मैं
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
मैं क्या करूँ यहीं करना है इंतिज़ार मुझे
इसी जगह तो मिला था वो पहली बार मुझे