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ग़ज़ल
हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए
हम हँस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
पी जा अय्याम की तल्ख़ी को भी हँस कर 'नासिर'
ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है
हकीम नासिर
ग़ज़ल
ऐ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा हाँ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा
आज एक सितमगर को हँस हँस के रुलाना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हँस के बुलवाइए मिट जाएगा सब दिल का गिला
क्या तसव्वुर है तुम्हारा कि मिटा भी न सकूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यूँ न चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में इनआ'म नहीं होता