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ग़ज़ल
गुनहगारों में शामिल मुद्द'ई भी और मुल्ज़िम भी
तिरा इंसाफ़ देखा और 'अदालत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
रहे दो दो फ़रिश्ते साथ अब इंसाफ़ क्या होगा
किसी ने कुछ लिखा होगा किसी ने कुछ लिखा होगा