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ग़ज़ल
मैं अक्खा इंडिया फिरता हूँ आज भी 'वाहिद'
मैं शेर लिख्खूँ लिखाऊँ किसी के बाप का क्या
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
नया कम-ख़्वाब का लहँगा झमकते ताश की अंगिया
कुचें तस्वीर सी जिन पे लगा गोटा कनारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अंगिया वो ग़ज़ब जिस को मलमल ही करे दिल भी
क्या जाने कि शबनम है ननसुख है कि मलमल है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कभी बोसा कभी अंगिया पे हाथ और गाह सीने पर
लगे लुटने मज़े के संगतरे और बैर आँधी में