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ग़ज़ल
अब तो तुम तरतीब दे सकते हो अफ़्साना मिरा
थक गया हूँ मैं तो औराक़-ए-परेशाँ देख कर
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
निज़ाम-ए-ज़िंदगी 'अबरार' कब तक दरहम-ओ-बरहम
कहीं यकजा ये औराक़-ए-परेशाँ हो भी सकते हैं
अबरार शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
मैं अपनी दास्तान-ए-ग़म को क्या उन्वान दूँ 'अज़्मत'
मुरत्तब दिल के औराक़-ए-परेशाँ हो भी सकते हैं
अज़मत भोपाली
ग़ज़ल
इक जगह रहने नहीं देती ज़माने की हवा
हो रहा हूँ मिस्ल-ए-औराक़-ए-परेशाँ इन दिनों
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-मोहब्बत में इक ऐसा दौर आता है
कि औराक़-ए-किताब-ए-दिल परेशाँ होते जाते हैं
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर
क्या ही पछताता था मैं क़ातिल का दामाँ छोड़ कर