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ग़ज़ल
हर लम्हा घमसान का रन है कौन अपने औसान में है
कौन है ये? अच्छा तो मैं हूँ लाश तो हाँ इक यार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
दिल में हुजूम-ए-दर्द है लेकिन आह के भी औसान नहीं
इस बदली को यूँही आख़िर बिन बरसे छट जाना होगा
शानुल हक़ हक़्क़ी
ग़ज़ल
फिर उसी धुन में उसी ध्यान में आ जाता हूँ
तुझे मिलता हूँ तो औसान में आ जाता हूँ
ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क
ग़ज़ल
अभी तो पहली मंज़िल है रह-ए-मक़्सूद की 'शैदा'
सँभल कर चल ज़रा हुश्यार हो औसान पैदा कर