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ग़ज़ल
मुझे लिखने वाला लिखे भी क्या मुझे पढ़ने वाला पढ़े भी क्या
जहाँ मेरा नाम लिखा गया वहीं रौशनाई उलट गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
नींद उचट जाने से सब पर झुंझलाहट सी तारी है
आँखें मीचे बाँध रहे हैं ख़्वाबों के शीराज़े लोग
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
किरन के हक़ में ये सूरज का फ़ैसला क्यूँ है
जो फ़र्श-ए-ख़ाक पुकारे तो दूर हट जाना
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
तसव्वुर में उभरता है कभी जब क़ब्र का मंज़र
उचट जाती हैं नींदें और बिस्तर काँप जाता है
शायान क़ुरैशी
ग़ज़ल
सोते सोते जब पुकार उठता हूँ अपने यार को
मरक़दों के सोने वालों की उचट जाती है नींद