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ग़ज़ल
पहली शाम नज़र आया था बिल्कुल ऐसा जैसे नाख़ुन
चौदह दिन में देखो कितना बड़ा हुआ है चाँद
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
ग़ज़ल
ख़्वाब मुसाफ़िर लम्हों के हैं साथ कहाँ तक जाएँगे
तुम ने बिल्कुल ठीक कहा है मैं भी अब कुछ सोचूँगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
सब कुछ झूट है लेकिन फिर भी बिल्कुल सच्चा लगता है
जान-बूझ कर धोका खाना कितना अच्छा लगता है
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
दिन रात मुझ पे करते हो कितने हसीन ज़ुल्म
बिल्कुल मिरी पसंद के मुख़्तार-ए-कार हो
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
कहने जैसी बात नहीं है बात तो बिल्कुल सादा है
दिल ही पर क़ुर्बान हुए और दिल ही को बीमार किया
मीना कुमारी नाज़
ग़ज़ल
दिल-आज़ारी ने तेरी कर दिया बिल्कुल मुझे बे-दिल
न कर अब मेरी दिल-जूई कि दिल-जूई से क्या हासिल