आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "بخار"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "بخار"
ग़ज़ल
मुझे नक़्ल पर भी इतना अगर इख़्तियार होता
कभी फ़ेल इम्तिहाँ में न मैं बार बार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
उतरता है 'सदा' उन का बुख़ार आहिस्ता आहिस्ता