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ग़ज़ल
ख़ुदाया हिन्द पर तेरी इनायत हो इनायत हो
बरादर को बरादर से मोहब्बत हो मोहब्बत हो
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
जिसे अपने बरादर की ख़बर-गीरी नहीं आती
न लिखना नाम उन का रब उख़ुव्वत में अतूफ़त में
इरफान आबिदी मानटवी
ग़ज़ल
क्या डुबो देता हूँ मैं दिल के कुएँ में ख़ुद को
चश्म-ए-बे-नूर में यूसुफ़ का बरादर हूँ मैं
काविश बद्री
ग़ज़ल
मा'लूम ये होता है अब तक यूसुफ़ के बरादर ज़िंदा हैं
जब अपने दुश्मन हो जाएँ ग़ैरों की शिकायत कौन करे