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ग़ज़ल
एक समुंदर आँसुओं का भर चुका कमरे में वो
अपनी बर्बादी का मातम कर चुका कमरे में वो
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
न मिलता ग़म तो बर्बादी के अफ़्साने कहाँ जाते
अगर दुनिया चमन होती तो वीराने कहाँ जाते
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
छिड़े हैं तार दिल के ख़ाना-बर्बादी के नग़्मे हैं
हमारे घर में साहिब रत-जगा ऐसा भी होता है