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ग़ज़ल
हाए अफ़सोस हुई कौन सी सोहबत बरख़ास्त
शब को मेराज में थे वक़्त-ए-सहर कुछ भी नहीं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
उस ने कब बरख़ास्त ऐ दिल महफ़िल-ए-मेराज की
किस से पूछूँ रात कम थी या सवा थी में न था