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ग़ज़ल
वाँ काम तो होते हैं ख़ुशामद से बरामद
क्या फ़िक्र करें हम को समाजत नहीं आती
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
कब ख़ुदा जाने वो ख़ल्वत से बरामद होंगे
महफ़िल-ए-नाज़ अभी जल्वा-गह-ए-आम नहीं
नवाब सय्यद हकीम अहमद नक़्बी बदायूनी
ग़ज़ल
अचानक गर वो बे-आमद ही कमरे में बरामद हो
तवज्जोह हम ने तो मरकूज़ बाम-ओ-दर पे रक्खी है