aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بسانا"
थी मश्वरत की हम को बसाना है घर नयादिल ने कहा कि मेरे दर-ओ-बाम ढाइए
बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्याभला अंधों से पर्दा क्यों करें हम
नए मकान बनाए तो फ़ासलों की तरहहमें ये शहर बसाना भी तो नहीं आया
शहर से बाहर की वीरानी बसाना थी मुझेअपनी तन्हाई पे कुछ तो मेहरबाँ होना ही था
हाथ मलने न हों पीरी में अगर हसरत सेतो जवानी में न ये रोग बसाना हरगिज़
नया इक ज़ख़्म खाना चाहता हूँमैं जीने को बहाना चाहता हूँ
इश्क़ की रस्म निभाना थी निभा ली मैं नेदर्द की बस्ती बसाना थी बसा ली मैं ने
दीवार पे वा'दों की अमर-बेल चढ़ा दीरुख़्सत के लिए और बहाना ही नहीं था
जब ख़ुदा को जहाँ बसाना थातुझ को ऐसा नहीं बनाना था
जो नक़्श मिट चुका है बनाना तो है नहींउजड़ा दयार हम ने बसाना तो है नहीं
पुराने घर में नया घर बसाना चाहता हैवो सूखे फूल में ख़ुशबू जगाना चाहता है
जुर्म-ए-मोहब्बत की तारीख़ें सब्त हैं जिन के दामन परउन लम्हों को दिल में बसाना कितना अच्छा लगता है
बस्ती बसाना खेल है क्याबस्ते बस्ते ही बस्ती है
अब अपने दिल में मुझे बसाना है कर्बला कोअब अपने दिल से दयार-ए-कूफ़ा निकालना है
ज़मीन बेच के तारे बसाना चाहते हैंये कौन लोग ख़लाओं में जाना चाहते हैं
ख़याल-ओ-फ़िक्र का दम घुट रहा हैनई दुनिया बनाना चाहता हूँ
बस मुझे एक घर बसाना थापूरी बस्ती उजाड़ आई थी
कुछ बताना नहीं कि तुझ से कहेंदिल दुखाना नहीं कि तुझ से कहें
कोई जादू जगाना चाहता हूँतुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ
तुझे अपना बनाना चाहता हूँमैं क़िस्मत आज़माना चाहता हूँ
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