aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بشارت"
वो चाँदनी की बशारत है हर्फ़-ए-आख़िर तक'बशीर-बद्र' को लाओ बड़ा अँधेरा है
शायद इस बार मिले कोई बशारत 'अमजद'आइए फिर से मुक़द्दर की जबीं देखते हैं
आवारा है फिर कोह-ए-निदा पर जो बशारततम्हीद-ए-मसर्रत है कि तूल-ए-शब-ए-ग़म है
तेरे आने की बशारत के सिवा कुछ भी नहींबाग़ में सूखे दरख़्तों का हरा हो जाना
खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसारक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी
मुझे न जन्नत-ए-गुम-गश्ता की बशारत देकि मुझ को याद अभी तक है हिज्रत-ए-अव्वल
ताबीर नज़र आने लगी ख़्वाब की सूरतअब ख़्वाब ही देखोगे बशारत न मिलेगी
दिल धड़कता है तो वो आँख बुलाती है मुझेसाँस आती है तो मिलती है बशारत उस की
अब फ़ैसला करने की इजाज़त दी जाएया फिर हमें मंज़िल की बशारत दी जाए
तिरे ख़याल ने तस्ख़ीर कर लिया है मुझेये क़ैद भी है बशारत भी है रिहाई की
वारफ़्तगी-ए-सुब्ह-ए-बशारत को ख़बर क्याअंदेशा-ए-सद-शाम-ए-ग़रीबाँ भी मिरा है
दिल सोया हुआ था मुद्दत से ये कैसी बशारत जागी हैइस बार लहू में ख़्वाब नहीं ताबीर की लज़्ज़त जाती है
जाने कब होगा मिरी ज़ात पे आप-अपना नुज़ूलख़्वाब कोई तो कभी मेरी बशारत मुझे दे
कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती हैरोज़ इक ताज़ा ख़बर ख़ल्क़-ए-ख़ुदा चाहती है
वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खामैं ने इक वस्ल को इक हिज्र की हालत लिख्खा
जहाँ से आए थे शायद वहीं चले गए हैंवो साहिबान-ए-बशारत कहीं चले गए हैं
सभी के ख़्वाब की ता'बीर ग़म हैतो फिर किस को बशारत हो रही है
बशारत हो कि अब मुझ सा कोई पागल न आएगाये दौर-ए-आख़िर-ए-दीवानगी है बीत जाएगा
बिसात-ए-रंग थी मुट्ठी में उस कीक़दम उस का बशारत की तरह था
मैं जिसे समझा हूँ आवारा हवा की दस्तकतेरे आने की बशारत भी तो हो सकती है
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