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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त को तिरी याद ने भरने न दिया
ग़म-ए-तंहाई मगर रुख़ पे उभरने न दिया
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
मुझ से पूछे तो कोई तेरे ग़ुलामों का 'उरूज
बादशाहों से भी रुत्बे में बिलाल अच्छा है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
यही दुआ है मिरी रब्ब-ए-दो-जहाँ से 'बिलाल'
किसी से अहद करूँ गर तो फिर निभाऊँ उसे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
क्या हमारे ख़्वाब थे दौर-ए-ग़ुलामी में 'बिलाल'
किस तरफ़ हम चल दिये आज़ाद हो जाने के बा'द