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ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
अब भी हो सकती है ईमान की रौनक़ 'अज़हर'
इक अज़ाँ फिर जो अँधेरों में बिलाली हो जाए
अज़हर बख़्श अज़हर
ग़ज़ल
इबादत के लिए इख़्लास की बे-हद ज़रूरत है
न हो रूह-ए-बिलाली तो अज़ाँ से कुछ नहीं होता
तालिब देहलवी
ग़ज़ल
एक ये दिन जब ज़ेहन में सारी अय्यारी की बातें हैं
एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
इन दिनों इश्क़ की फ़ुर्सत ही नहीं है वर्ना
उस दरीचे की उदासी तो बुलाती है मुझे