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ग़ज़ल
वज्द में लाते हैं मुझ को बुलबुलों के ज़मज़मे
आप के नज़दीक बा-मअ'नी सदा हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
शाख़-ए-गुल हिलती नहीं ये बुलबुलों को बाग़ में
हाथ अपने के इशारे से बुलाती है बहार
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था
नफ़ीर-ए-बुलबुलों से नाला-हा-ए-ज़ार बेहतर था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
साथ है इक ग़ैरत-ए-गुलज़ार क़ैसर-बाग़ में
बुलबुलों को दे रहे हैं ख़ार क़ैसर-बाग़ में
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
ख़ुदा समझे ये क्या सय्याद ओ गुलचीं ज़ुल्म करते हैं
गुलों को तोड़ते हैं बुलबुलों के पर कतरते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
मिन्नतें कर के छुड़ाता बुलबुलों को दाम से
मैं ज़र-ए-गुल देता अगर सय्याद क़ीमत माँगता
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
न क्यूँ हम इंक़िलाब-ए-दहर को मानें अगर देखें
गुलों का नाला करना बुलबुलों का मुस्कुरा देना
साइल देहलवी
ग़ज़ल
मोईन निज़ामी
ग़ज़ल
मुस्कुरा कर आशिक़ों पर मेहरबानी कीजिए
बुलबुलों की पास-ए-ख़ातिर गुल-फ़िशानी कीजिए