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ग़ज़ल
मेरे उज़्र-ए-जुर्म पर मुतलक़ न कीजे इल्तिफ़ात
बल्कि पहले से भी बढ़ कर कज-अदा हो जाइए
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
तग़ाफ़ुल बद-गुमानी बल्कि मेरी सख़्त-जानी से
निगाह-ए-बे-हिजाब-ए-नाज़ को बीम-ए-गज़ंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जिन पे हों ऐसे ज़ुल्म ओ सितम हम नहीं वो लोग
हों रोज़ बल्कि लुत्फ़ ओ करम ऐसे शख़्स हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
दिल में क्या उस को मिला जान से हम देखते हैं
बल्कि जाँ है वही जब ध्यान से हम देखते हैं
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
हुए रोने से मिरे दीदा-ए-बेदार सफ़ेद
बल्कि अश्कों ने किया रंग-ए-शब-ए-तार सफ़ेद