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ग़ज़ल
ब-चश्म-ए-नम तिरी दरगाह से गया 'फ़ारूक़'
ख़ता मुआ'फ़ कि ये बंदा-परवरी ही तो है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ब-चश्म-ए-नम तिरी दरगाह से गया 'फ़ारूक़'
ख़ता मुआ'फ़ कि ये बंदा-परवरी ही तो है