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ग़ज़ल
हम भी त'अमीर-ए-वतन में हैं बराबर के शरीक
दर-ओ-दीवार अगर तुम हो तो बुनियाद हैं हम
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
कौन सहराओं की प्यास है इन मकानों की बुनियाद में
बारिशों से अगर बच भी जाएँ तो दरिया नहीं छोड़ता
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
आशिक़ के घर की तुम ने बुनियाद को बिठाया
ग़ैरों को पास अपने हर दम बिठा बिठा कर