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ग़ज़ल
अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
हमें आता है पतझड़ के दिनों गुल-बार हो जाना
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
अब न बोलो आप कुछ और ना ही अब बोले कोई
वो कभी का मर चुका है मर चुका कमरे में वो
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
तुम भी तो 'मुज़फ़्फ़र' की किसी बात पे बोलो
शाएर का ही लफ़्ज़ों पे इजारा नहीं होता
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
कुछ मत बोलो चुप हो जाओ बातों में क्या रक्खा है
क्यूँ करते हो ऐसी बातें जिन बातों में जान नहीं