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ग़ज़ल
दाग़ बन कर तो रहा दामन-ए-क़ातिल पे मगर
बू-ए-ख़ूँ बहर-ए-ख़ुदा बू-ए-वफ़ा हो जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
दम-ए-आख़िर मुसीबत काट दो बहर-ए-ख़ुदा मेरी
तुम आ कर दर्द के पर्दे में कर जाओ दवा मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
अपना पता मुझे बता बहर-ए-ख़ुदा तू कौन है
तुझ पे हैं सारे मुब्तला बहर-ए-ख़ुदा तू कौन है
यासीन अली ख़ाँ मरकज़
ग़ज़ल
मुश्किलें सारी तिरी पल में ही आसाँ होतीं
दिल से इक बार ख़ुदा को जो पुकारा होता
फौज़िया अख़्तर अज़्का
ग़ज़ल
मुझे काफ़िर ही बताना है ये वा'इज़ कम-बख़्त
मैं ने बंदों में कई बार ख़ुदा को देखा
मिर्ज़ा मायल देहलवी
ग़ज़ल
होगी ख़बर जो हम ने सुनी बेश-ओ-कम ग़लत
खाओ न बार-बार ख़ुदा की क़सम ग़लत
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
मुझ को तो काम कुछ न था गो कि वो थे परी-लक़ा
बार-ए-ख़ुदा ये क्या हुआ क्यूँ वो मुझे सता गए