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ग़ज़ल
जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने बेगाने से रहते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
'फ़ैज़' उन को है तक़ाज़ा-ए-वफ़ा हम से जिन्हें
आश्ना के नाम से प्यारा है बेगाने का नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
देख के उस बस्ती की हालत वीराने याद आते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
जफ़ाओं के गिले तुम से ख़ुदा जाने बहुत से हैं
मगर महशर का दिन है अपने बेगाने बहुत से हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
कर दिया गर्दिश-ए-अय्याम ने रुस्वा 'साहिर'
मुझ को शिकवा है यगाने से न बेगाने से