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ग़ज़ल
बे-हद बेचैनी है लेकिन मक़्सद ज़ाहिर कुछ भी नहीं
पाना खोना हँसना रोना क्या है आख़िर कुछ भी नहीं
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
मिरी आँखों में बेहद प्यार था और तुम कहीं गुम थे
लबों पर शोला-ए-इज़हार था और तुम कहीं गुम थे
शाहाना शीरीं
ग़ज़ल
उन के जौर-ए-बेहद को भी ख़ामोशी से सहता हूँ
जाने किन मौहूम उम्मीदों की रौ में मैं बहता हूँ
सरवर आबिदी
ग़ज़ल
फ़साना जौर-ए-बेहद का कभी दोहरा नहीं सकता
करम हर्फ़-ए-शिकायत बन के लब पर आ नहीं सकता
माहिर क़ुरैशी बरेलवी
ग़ज़ल
बे-हद ग़म हैं जिन में अव्वल उम्र गुज़र जाने का ग़म
हर ख़्वाहिश का धीरे धीरे दिल से उतर जाने का ग़म
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
ग़म-ए-बेहद में किस को ज़ब्त का मक़्दूर होता है
छलक जाता है पैमाना अगर भरपूर होता है