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ग़ज़ल
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
बंद आँखों से नज़र आती है हर शय दहर की
आलम-ए-रूया में फ़र्क़-ए-ख़्वाब-ओ-बेदारी नहीं
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
ये जल्वों की ताबानियों का तसलसुल
ये ज़ौक़-ए-नज़र का दवाम अल्लाह अल्लाह