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ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
औरों पे न जाने क्या गुज़री इस तेग़-ओ-तबर के मौसम में
हम सर तो बचा लाए लेकिन दस्तार सर-ए-बाज़ार गिरी
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
तू मेरा हौसला तो देख फिर हूँ उसी के रू-ब-रू
तीर-ओ-तबर हैं उस के पास और मैं ढाल के बग़ैर
कुमार पाशी
ग़ज़ल
सीना-ए-नख़्ल से आती है उबल दूध की धार
खींच इस का जो कोई तिफ़्ल तबर लेता है