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ग़ज़ल
हर इक लुग़त से मावरा मैं हूँ 'अजब मुहावरा
मेरी ज़बाँ में पढ़ मुझे दुनिया का तर्जुमा न मान
अभिषेक शुक्ला
ग़ज़ल
मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
मिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
मोहम्मद भी तिरा जिबरील भी क़ुरआन भी तेरा
मगर ये हर्फ़-ए-शीरीं तर्जुमाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़रा मुश्किल से समझेंगे हमारे तर्जुमाँ हम को
अभी दोहरा रही है ख़ुद हमारी दास्ताँ हम को