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ग़ज़ल
ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद के शैदाई शायद तुझ को इल्म नहीं
तेरे भी सपने टूटेंगे मेरे हर इक ख़्वाब के साथ
रहबर जौनपूरी
ग़ज़ल
ज़माना तिश्ना-काम-ए-अम्न है तस्कीं का भूका है
चलो ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद-ख़ेज़ गहवारे बदल डालो
इब्राहीम ख़लील
ग़ज़ल
तेरे ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद का तेरी शोला-बयानी का
गिला क्या कर नहीं सकते हैं लेकिन हम नहीं करते
याक़ूब साक़ी
ग़ज़ल
ग़म-ए-दिल की ज़बाँ अहल-ए-तशद्दुद कम समझते हैं
न दिल को दिल समझते हैं न ग़म को ग़म समझते हैं
तालिब चकवाली
ग़ज़ल
तवाना को बहाना चाहिए शायद तशद्दुद को
फिर इक मजबूर पर शोरीदगी का इत्तिहाम आया
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
तवाना को बहाना चाहिए शायद तशद्दुद का
फिर इक मजबूर पर शोरीदगी का इत्तिहाम आया