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ग़ज़ल
मिरे लिए तो है इक़रार-ए-बिल-लिसाँ भी बहुत
हज़ार शुक्र कि मुल्ला हैं साहिब-ए-तसदीक़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इक सफ़र हौसले और ख़्वाहिश की तस्दीक़ करता हुआ
एक रस्ते पे मा'दूम होते हुए नक़्श-ए-पा के लिए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
आक़िब साबिर
ग़ज़ल
हाँ मगर तस्दीक़ में उम्रें गुज़र जाती हैं 'नूर'
कुछ न कुछ रहता है सब को अपनी मंज़िल का पता
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
तिरी बेबाकियाँ 'जानिब' यही तस्दीक़ करती हैं
हर इक इंसान को दुनिया में हुश्यारी नहीं आती
महेश जानिब
ग़ज़ल
मिरे होने का ये तस्दीक़-नामा किस ने लिक्खा है
गवाही किस की मेरी ज़ात के महज़र पे रक्खी है