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ग़ज़ल
कोई मौक़ा ज़िंदगी का आख़िरी मौक़ा नहीं
इस क़दर ताजील क्यों रफ़-ए-कुदूरत के लिए
हफ़ीज़ होशियारपुरी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
ये फ़ज़ीलत मिरे मे'यार से कम है शायद
आँख से ख़ून न टपका अभी नम है शायद
सय्यद मोहम्मद ताजील मेहदी
ग़ज़ल
रह रह के धड़क उठता है जिगर और साँस भी उखड़ी जाती है
ऐ मौत ठहर ताजील न कर दम भर में वो आए जाते हैं
हबीब जौनपुरी
ग़ज़ल
इक तबस्सुम के तसव्वुर में फ़िदा जान न कर
इतनी ता’जील अभी ओ दिल-ए-जाँ-बाज़ नहीं
बिशन दयाल शाद देहलवी
ग़ज़ल
अब किसी शय में मिरा दिल नहीं लगता 'ता’जील'
रौनक़ें ख़त्म हुईं क़ल्ब की वीरानी से
सय्यद मोहम्मद ताजील मेहदी
ग़ज़ल
मुझ को हैरत है कि की उम्र बसर उस ने कहाँ
इस जहालत पे तो ने तुर्क न ताजीक है दिल