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ग़ज़ल
वस्ल ओ हिज्राँ में तनासुब रास्त होना चाहिए
इश्क़ के रद्द-ए-अमल का मसअला छेड़ूँगा मैं
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
बुरा लगता है हम को इक तनासुब का बिगड़ जाना
कुछ ऐसे लोग हैं जिन को भुला अच्छा नहीं लगता
अतीक़ असर
ग़ज़ल
इफ़्तिख़ार हैदर
ग़ज़ल
पुख़्तगी समझे हुए हैं जो तनासुब को फ़क़त
चाहिए इस्लाह उन को इस ख़याल-ए-ख़ाम की
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
ये ख़ैर-ओ-शर में तनासुब तुम्ही से क़ाएम है
तुम्ही हो मुसबत-ओ-मनफ़ी के संग-ए-हाक़ तुम्ही